Hindi translation of The Hindu’s editorial ‘A setback’ — on the October general election in Japan
The Hinduजापान में 27 अक्टूबर को हुए आम चुनाव के नतीजों ने इस जी-7 के देश एवं सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक के भीतर तमाम आकलनों को ध्वस्त कर दिया है। सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी 465 सीटों वाले हाउस रिप्रेजेंटेटिव्स में 256 सीटों से घटकर 191 सीटों पर आ गई और उसके साथी कोमिटो की सीटें 32 से घटकर 24 रह गईं, जिससे यह गठबंधन बहुमत से दूर रह गया। एलडीपी, जो पिछले छह दशकों से ज्यादा वक्त से सत्ता में है, को जनता का समर्थन नहीं मिल रहा है। खासकर, 2020 में शिंजो आबे के पद छोड़ने और 2022 में उनकी हत्या के बाद। सहानुभूति हासिल करने के बावजूद, उनके उत्तराधिकारी फुमियो किशिदा को एलडीपी के कोरियाई यूनिफिकेशन चर्च के साथ संबंधों और एलडीपी सांसदों द्वारा धन उगाहने से संबंधित घोटाले पर सवालों का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें इस साल की शुरुआत में सत्ता से हटने को मजबूर कर दिया। इससे पार्टी के भीतर चुनाव का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसमें अनुभवी नेता और पूर्व रक्षा मंत्री शिगेरु इशिबा ने जीत हासिल की। नुकसान की बड़ी वजह बुजुर्ग होती आबादी के बीच सुस्त आर्थिक विकास है, जिसका कोई आसान हल नहीं है। अब जबकि एक अक्टूबर को कार्यभार संभालने वाले इशिबा अगले सोमवार को डाइट के सत्र की शुरुआत से पहले संख्याबल जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी सफलता के आसार किसी भी तरह से निश्चित नहीं नजर आ रहे: मुख्य विपक्षी वामपंथी-मध्यमार्गी कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, जिसने अपनी सीटें 98 से बढ़ाकर 148 कर ली हैं, अगली सरकार बनाने के लिए गठबंधन के सहयोगियों की तलाश और निर्दलीय सांसदों को अपने पाले में करने की योजना बना रही है। इस कवायद ने भी एलडीपी को कमजोर कर दिया है और पार्टी के भीतर विभिन्न गुट हार, प्रचार अभियान के लिए जुटाए गए स्लश-फंड “उरगेन” घोटाले और अनाचक चुनाव कराने के इशिबा के फैसले के लिए लिए एक-दूसरे पर तोहमत लगा रहे हैं। डाइट के सत्र का नतीजा चाहे कुछ भी हो, यह साफ है कि नई सरकार अस्थिर होगी। इससे वैश्विक स्तर पर जापान के प्रभाव पर एक ऐसे समय में असर पड़ेगा, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। अमेरिका, जहां राष्ट्रपति चुनाव में उतार-चढ़ाव वाले नतीजे आ सकते हैं, पर जापान का नरम प्रभाव भी खो जा सकता है। जापान के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी, रूस, चीन और उत्तर कोरिया, इशिबा के “एशियाई नाटो” के प्रस्ताव पर अपनी चिंताओं के मद्देनजर जापान की रक्षा मुद्रा में कमजोरी के संकेतों पर नजर गड़ाये हुए होंगे। भारत के लिए, जापान के साथ द्विपक्षीय संबंध विदेश नीति के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले महीने सालाना शिखर सम्मेलन के लिए जापान जाने वाले हैं, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए इस दौरे को स्थगित करना पड़ सकता है। इससे कई महत्वपूर्ण वार्ताएं खटाई में पड़ सकती हैं, जिनमें संकटग्रस्त बुलेट ट्रेन-शिंकानसेन परियोजना भी शामिल है। ‘एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर’ के एक हिस्से के रूप में, हिन्द-प्रशांत और दक्षिण एशियाई देशों में भारत-जापान संयुक्त परियोजनाओं की योजनाओं में और देरी होगी। हालांकि, यह नीतिगत जोर के बजाय सिर्फ कुछ समय की बात होगी, क्योंकि भारत की तरह ही जापान में भी दोनों देशों के बीच संबंधों के महत्व को द्विदलीय समर्थन हासिल है।