जटिल समस्याओं का पिटारा: नीट-यूजी 2024
The Hinduशासन में विश्वास ही सब कुछ हो सकता है। राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा -यूजी-2024 के नतीजों के प्रकाशन के साथ ही फूटे जटिल समस्याओं के पिटारे ने मेडिकल सीटों के लिए होने वाली इस प्रवेश परीक्षा को लोगों के बीच व्यवस्था में अविश्वास के एक रूपक के रूप में स्थापित कर दिया है। इस साल प्रश्न-पत्र लीक होने, कदाचार और तकनीकी विफलताओं के आरोपों के अलावा, कुछ छात्रों को अनुग्रह अंक देने के आरोपों से घिरा नीट, जिसकी परिकल्पना योग्यता के आधार पर चयन को एकरूप करने के मकसद से की गई थी अब एक ऐसी हिकमत में तब्दील हो गया है जो अपने मूल मकसद से हटकर बहुत दूर चला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा आयोजित परीक्षा के दौरान अनियमितताओं और कदाचारों से जुड़ी शिकायतों का निपटारा करने के लिए नीट-यूजी की सुनवाई 18 जुलाई को पुनर्निर्धारित की। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा आरोपों की जांच जारी है। इस बीच, केंद्र ने आईआईटी मद्रास द्वारा पेश एक डेटा विश्लेषण रिपोर्ट पर बहुत ज्यादा भरोसा किया है। इस रिपोर्ट में यह पता लगाने के लिए परीक्षा के नतीजों की जांच की गई है कि कदाचार हुआ है या नहीं। इस रिपोर्ट के कार्यकारी सारांश में यह दावा किया गया कि दो साल के केंद्र और शहर-वार किए गए विश्लेषण में कोई असामान्यता नहीं पाई गई। यह विश्लेषण देश के शीर्ष 1.4 लाख रैंक के लिए किया गया था। इसमें आगे कहा गया है कि बड़े पैमाने पर कदाचार या स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों को फायदा मिलने का कोई सबूत नहीं है। छात्रों के अंकों में कुल वृद्धि, एक आरोप जो शुरू में लगाया गया था, के लिए पाठ्यक्रम में 25 फीसदी की कमी को जिम्मेवार माना गया है और यह रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि ऐसा कई शहरों में हुआ है। हालांकि, सोशल मीडिया पर आवेदकों का आक्रोश जारी है। हालांकि नीट विवादों से अछूता नहीं रहा है। कई राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन इस साल इसके खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, उनका देश भर में बड़े पैमाने पर होशियार विद्यार्थियों के बीच इस परीक्षा के प्रति अविश्वास का भाव पैदा करने वाला प्रभाव पड़ा है। यहां से आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह सुनिश्चित करना है कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक मंचों पर घनघोर बहस हो और सभी संदेह दूर किये जायें, बजाय इसके कि ढंकी हुई समस्याओं को एक झटके में बुहारने की कोशिश की जाए। कदाचार के जोरदार खंडन का सार्वजनिक मंच पर प्रभावित लोगों के साथ संवाद करने एवं स्पष्टीकरण प्रदान करने की इच्छा के साथ मेल होना चाहिए। जहां त्रुटियां हुई हैं, जोकि इस पैमाने की कवायद में संभव है, उसकी उपयुक्त स्वीकृति और उसके लिए माफी मांगा जाना जरूरी है। जब भरोसे का खून हो जाए, तो इसकी भरपाई कभी-कभी संपूर्ण ईमानदारी से की जानी चाहिए। दीर्घकालिक अवधि में, सरकार को परीक्षा प्रक्रिया में अपेक्षाकृत ज्यादा सुगमता का समावेश करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एनटीए एवं उसकी संबंधित एजेंसियां पारदर्शिता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहें। यह विद्यार्थियों की सुरक्षा जांच समेत परीक्षा के संचालन के बारे में उठाए गए अन्य समस्याओं को दुरुस्त करने का भी मौका साबित हो सकता है।